मंगलवार, 26 सितंबर 2017

जिंदगी है क्या?

सोचा हर बार,
जिंदगी  है क्या ?
जो दिखता है , वो है !
या जो दिखाते हैं , वो है!
लोग जो देखते हैं ,
वो है क्या?
सिर्फ देखना,
दिखाना ही जिंदगी है क्या?

तो जो जीते हैं हम अपने भीतर !
वो है क्या?
जिसे जीते हैं हम खुद,
वो भाव,
जिसे करतें हम अहसास,
धड़कता है दिल जो अपना,
कोई ना कर पाए उसका भास,
यही जिंदगी है क्या ?

स्वपरिचय,या 'अपनों' से,
स्व का आभास!
'अपनों से' ,दिया गया आस
या हो हर वक़्त परिहास।
बेशक बन जाओ जिंदा लाश,
यही जिंदगी है क्या??

उम्मीद की गठरी बांधते,
बीत गई ताउम्र ।
करती रही किस्मत अपने कर्म,
समझ सका ना कोई इसका मर्म।

फिर भी दो पल 'अपनों' का साथ,
जीने का कराए अहसास,
ये शब्दों का ताना बाना
या खुद को बहलाना,
यही जिंदगी है क्या?
क्या यही जिंदगी है क्या?
पूनम🤔

सोमवार, 25 सितंबर 2017

दर्द!!


दफन है हर एक वो बात उर में,
देती है जो दर्द हर वक्त सीने में।

किया कोशिश कई बार,
करने को ,
कलम बंद पन्ने में!
पर बारम्बार आ जाते ,
तेरे अक्स नयनों में।

तसव्वुर के वो लम्हें हसीन
जुदा ना होते ख़यालों में।
इबादत माना तेरे उल्फत को.....
खुदा गवाह है ,
ना हुआ अपने नसीब में।

अधरों पे है हंसीं भी,
विश्व तो है सिर्फ गफ़लत में,
दफन है हर एक वो बात उर में,
देती है जो दर्द हर वक्त सीने में।।
पूनम😑

रविवार, 24 सितंबर 2017

मन्नत !!

हर पल निहारती रही तुम्हें
और यूँ ही कह दिया ,कभी तुमपे ध्यान ना दिया

अरे कभी देखो मेरी तरफ ;
तब न जानो,क्या होती है तड़प।।

ढूंढती रही वो प्यार भरी नजरें तुम्हारी,
अक्सर दिख जाया करती जो तुम्हारे चेहरे पे,
किसी गैर के लिए।।

कई बार बड़ी आरजू भी की....
जानम, तड़प है सिर्फ उन प्यारी नजरों की,

हटते नहीं थे कभी जो मेरे चेहरे से,
खुद को मानती थी मैं नसीबों वाली।

तलाशते रह जाती उन नजरों को,
भावनाओं से जो लबरेज,छू जाती थीं,
मेरे रूह को।।

आदत भी तो तुमने ही बिगाड़ा है साहेब,
समेटे हरवक्त अधरों में, लिपटाया है सनम।

पलक झपकने को भी, न होने देते थे ओझल।
तरसूं उन नजरों के लिए, हूँ मैं बोझिल ।

पल भर भी गंवारा नहीं,
तुम बिन साजन!

पर परवाह नहीं
तुम्हे उन लमहों का,
अब कोई।

रही यही मन्नत मेरे उल्फत!
खुश रहो सदा

बसा कर बस निगाहों में अपनी,
निहारती रहूँ ...............

दूसरों को निहारती,
प्यार भरी नजरों को तुम्हारी!
पूनम💛

शुक्रवार, 22 सितंबर 2017

जीवन की नैया !!

आओ चलें कही दूर,
जहां ना हो कोई पीर
बस मैं और तुम बांट ले ,
हर खुशी और गम।

दुनिया तो किसी की नहीं,
जैसे भी रहो सही
किसी को क्या लेना।
हमें तो बस हमदम
तेरा साथ पाना।
अश्कों के तेल में
कजरों की बाती बना, '
दिया' जलाना।।

आस लगाती ये
टिमटिमाती लौ,
प्यास बुझाते
ये अविरल अश्रुधार,
बन जाओ प्रिय तुम सूत्रधार।

आ जाओ पिया सोख लो अंसुअन को
पोंछ डालो कजरों को
डूबकी लगा लो इन नयनन में।
मत छोड़ो बीच मझधार ,
बने रहो खेवनहार।

लगा दो जीवन की नैया पार
बने रहो खेवनहार.....ओ मेरे प्यार।।
पूनम💕

बुधवार, 20 सितंबर 2017

किराएदार हूँ, अपना मकान थोड़े है!!

जो आज साहिबे मसलन हूँ,
वो कल थोडे हैं।
किरायेदार हूँ,अपना मकान थोड़े है।

आत्मा हमारे जिस्में साज है,
वो आज है, कल थोड़े है
दर्दे जख्म से आज दिल लहूलुहान है,
आंसुओं की बरसात,
जो आज है,कल थोड़े है।

साहिबे कद्र के जो हैं अरमान,
चाहतों के सिलसिले जो हैं ख़ास,
वो आज हैं, कल थोड़े है।

बिताए इतने वक़्त,रहमते दरकार,
लगाए जो तोहमत आपने सरकार,
ये रहनुमा ,तुम्हारे प्यार के तरसदार
वो आज है ,कल थोड़े है।
किरायेदार हूँ,अपना मकान थोड़े है।।
पूनम🎲

सोमवार, 18 सितंबर 2017

चाँदनी!!


चाँद भी रोज कट कट कर मरता
और कट-कट कर जीता है
'विश्व' को क्या पता,
वो तो सिर्फ 'पूनम' की,
चाँदनी को पीता है।।
पूनम🤔

बुधवार, 13 सितंबर 2017

ले रहा कलियुग समाधि !!


कलियुग का अंत आ रहा हो जैसे,
जी रहें हैं हम 'जहान' में ऐसे
इंसान और जानवर में फर्क
करें तो करें कैसे।
करे कत्लेआम इन्सान ऐसे
जानवर भी न करे कोई जैसे।

शब्दों का बाजार है,
बिकती हैं बातें अनमोल।
समां है ये कैसा,
जहां,बड़े तो बड़े ,
बच्चों का भी ना है कोई मोल।
जिस दुनिया में ,
शायद कुत्ते भी
बिल्ली के बच्चों पे रहम करे,
वहाँ मानव  सूत के
निर्मम हत्यारे को क्या पुकारे।

कहीं बैठे हैं!
धर्म की आड़ में,
भावनाओं से खेल ,
शरीर को लूट ,मन को
तार तार करने वाले,
स्वयंभू नरपिशाच दरिंदे।
अनगिनत लोगों को ले
अपने सम्मोहन में,
पंख हीन बना उड़ा दिया
उन्मुक्त गगन में जैसे परिंदे।

क्या सच हो रही है
भागवत पुराण की भविष्यवाणी,
जो होगा धनी,वही होगा गुणी।
छल होगा ,कानून और न्याय!
सब शक्ति शाली पर निर्भर होगा।
हो रहे हैं मानव छली,कपटी,
दुष्चरित्र ,अहंकारी और अधमी।
दया ,धर्म, मानवता का हो रहा है नाश,
मनु ही मनु का कर रहा सर्वविनाश।

कहां है सहिष्णुता,
किसे कहते सत्यवादिता
प्यार बन गया है सिर्फ समझौता
 बन गया पेट भरना ही,
एक लक्ष्य जीवन का।
नष्ट हो रहा प्यार सहोदर का
और अल्प हो रही जीवन की अवधि

ये समापन काल इस युग का
फैल रही हर जगह व्याधि
क्षत-विक्षत मानवता की कार्यपद्धति,
ले रहा कलयुग  समाधि ।
ले रहा कलयुग समाधि ।।

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सपना तो सपना ही है !!


क्या कहूँ हालें बयान दिल का
सुबक सुबक,कसक कसक
धड़क धड़क,तड़प तड़प
छटपटात भरपूर
क्योंकि इसे समझने वाला
बैठा है बहुत दूर।

दिन गुज़र जाता है
गाहे बगाहे जरूरत में,
रातें होती है इतनी लंबी
काटें नहीं कटती,
यही है फितरत में।।

सोचा था.....
देखे थे सपने।
होंगे सिर्फ मैं और तुम
एक दूसरे के बांट लेंगे
हर खुशी और गम ।।
पल भर भी ना जाएंगे
एक दूजे से कंहीं दूर।।

एक सुर होगा,एक ताल होगी
एक ही लय होगी,दिल के धड़कनों की
आंखें हीं समझ लेंगी बातों को,
ना काम होगा जुबान की।

पर क्या पता था, सपना तो सपना होता है
हकीकत में ये सब मुमकिन ना होता है।

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

बेवफा !!


जिंदगी भी बड़ी अजीब है
हंसने ही नही देती।
रोने भी नहीं देती
नदी के हर लहरों को
किनारा नहीं मिलता।।
हर प्रेयसी को उसका
सहारा नहीं मिलता।

माना मैं नहीं तुम्हारे काबिल
पर बेवफाई का भी आस न था,
हर राह चलते पे, तुम झुक जाओगे
ऐसा भी अंदाज न था।
खुदगर्ज तुम,देखी थी बेरुखी तुम्हारी
कई बार,
सरेआम जिल्लत करना भी था
तुम्हारे आदत में बेशुमार ।
पर ये ना था भान,
खुलेआम ,सरेबाजार ,
हमारे रिश्ते को करोगे जार जार।।

हंस लो जी भर के
मेरी बेबसी पर,
मेरी हर बून्द आंसूं के
तुम्हारी खुशी की दुआ करेंगे।
मुक्त हो तुम,कोई नहीं बंदिश,
ना ही हमें कोई रंजिश ।
जी लो अपनी जिंदगी खुल कर
कोई एक तो रहे खुश हो कर।

लाचार मैं , तुम्हें प्यार करने का
चाह रखती हूं,
पाने का अधिकार नहीं।
कभी साथ हंसने ,रोने वाले
आज एक दूसरे पे हंसते रोते हैं।

सूखे पत्तों की तरह गिर जाएंगे
तुम्हारी साखों से,
अपने नए हरी पत्तियों के साथ आबाद रहना।
पर इतना जरूर याद रखना,
बेवफाई सिर्फ 'वफ़ा'करने वालों को ही
नहीं मिलती,
'बेवफा,' को भी ये अपने आगोश में ले लेती हैं।।
पूनम💔

बुधवार, 6 सितंबर 2017

तुम्हारे बिना !!



मैंने भी सीख लिया है,
जीना! तुम्हारे बिना।
हर पल और रात दिन,
बिताना! तुम्हारे बिना।

खुश तो बहुत हो तुम
अपनी दुनिया में,
मेरे बिना।
सीख लिया है मैंने भी,
खुशी में तुम्हारी,
खुश होना! तुम्हारे बिना।

हर सुख- दुख में सीख गए
खुद को बहलाना,
आ गया अब रोकना
आँसूओं का बहना,
सीख गए गम को,
पीना! तुम्हारे बिना।

सपने भी आने लगे,
नींद भी आने लगी
सीख गए जाग-जाग कर,
सोना! तुम्हारे बिना।

बातें तो बहुत थीं
जज्बात भी बहुत थे
सीख गए निःशब्द बात
करना! तुम्हारे बिना।

बिता दी जिसकी ,
याद में जिंदगी,
आई ना उसे याद,
हमारी कभी
सीख गए मर-मर कर
जीना! तुम्हारे बिना।

जंग लोहे में लगती है
मिट्टी में नहीं
फौलादी कठोर बनो तुम,
हम क्यों बुने ताना- बाना
मैं तो मिट्टी की बनी
मिट्टी में ही मिल ,
जाना ! तुम्हारे बिना।

नजरों की तुम्हारी तुच्छ मैं
सिख गई सर उठा कर ,
चलना ! तुम्हारे बिना।
मैंने भी सीख लिया है
जीना! तुम्हारे बिना।।
पूनम😶

रविवार, 3 सितंबर 2017

काश आपने 'बेटा' नहीं 'बेटी' बनाया होता!!



शादी के कुछ दिनों बाद
जब हो गई ससुराल में आबाद
बिटिया ने पूछा,
माँ अगर करना ही था,
पराया हमें,
बनाना था उस घर को अपना
तो बचपन से ही ये बात बतानी थी ना,
एक अनजाने घर के लिए करना होगा
अपने घर को पराया,
ये बातें समझानी थी ना।

आता है याद
जब भी तुम कुछ कहने को होती,
शादी-ब्याह की बात ।
झट पापा डांट लगाते तुम्हे,
चुप करो मत करो फालतू बकवास।
बेटी नहीं,बेटा है ये
पढ़- लिख बनना है,इसे कुछ खास।

मुझे भी माँ तुमपे गुस्सा आता,
क्यों करने कहती ये मुझे काम,
प्यार नहीं करती है मुझको
दूर भेजने का लेते रहती नाम।

पापा कितने अच्छे हैं,
मुझे सिर्फ पढ़ाएंगे,
बड़ा बनाएंगे,
हम साथ ,साथ
आफिस चलाएंगे।

जब आई बेला शादी की
आपने सामाजिक रीति बताया,
कहते बात नहीं कोई नई
हर के जिंदगी में ये मोड़ आया।

अब जब पापा कहते
बेटा आती नहीं,
बैठ दो बातें करती नहीं,
खुश हो ना घर में अपने
रोक अपने क्रंदन जबरन
कहना पड़ता,
काश आपने हमें 'बेटा' नहीं,
'बेटी' बनाया होता।
तो मैंने भी नए रिश्ते को
आसानी से अपनाया होता।।

माँ के अस्फुट सलाह ही
आज आ रहे काम,
समझ आती है,
अब सारी बातें,
मां कहती थी क्यों ऐसा।
क्योंकि वो तो खुद है भुक्तभोगी,
इन सब परिस्थितियों से गुजरी होगी।
कितने आराम से आपके घर को
अपना बनाया होगा।।

पर आप नहीं समझ सकते पापा,
आपने अपना घर छोड़ा नहीं
आपने सीखा नहीं ,
दूसरे घर को अपना बनाना।

माँ सही कहती पापा
एक लड़की ही जानती है
पराये नीड़ को घर बनाना।
काश,आपने 'बेटा'नहीं
'बेटी ' बनाया होता।।
पूनम♥

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...