बुधवार, 13 सितंबर 2017

ले रहा कलियुग समाधि !!


कलियुग का अंत आ रहा हो जैसे,
जी रहें हैं हम 'जहान' में ऐसे
इंसान और जानवर में फर्क
करें तो करें कैसे।
करे कत्लेआम इन्सान ऐसे
जानवर भी न करे कोई जैसे।

शब्दों का बाजार है,
बिकती हैं बातें अनमोल।
समां है ये कैसा,
जहां,बड़े तो बड़े ,
बच्चों का भी ना है कोई मोल।
जिस दुनिया में ,
शायद कुत्ते भी
बिल्ली के बच्चों पे रहम करे,
वहाँ मानव  सूत के
निर्मम हत्यारे को क्या पुकारे।

कहीं बैठे हैं!
धर्म की आड़ में,
भावनाओं से खेल ,
शरीर को लूट ,मन को
तार तार करने वाले,
स्वयंभू नरपिशाच दरिंदे।
अनगिनत लोगों को ले
अपने सम्मोहन में,
पंख हीन बना उड़ा दिया
उन्मुक्त गगन में जैसे परिंदे।

क्या सच हो रही है
भागवत पुराण की भविष्यवाणी,
जो होगा धनी,वही होगा गुणी।
छल होगा ,कानून और न्याय!
सब शक्ति शाली पर निर्भर होगा।
हो रहे हैं मानव छली,कपटी,
दुष्चरित्र ,अहंकारी और अधमी।
दया ,धर्म, मानवता का हो रहा है नाश,
मनु ही मनु का कर रहा सर्वविनाश।

कहां है सहिष्णुता,
किसे कहते सत्यवादिता
प्यार बन गया है सिर्फ समझौता
 बन गया पेट भरना ही,
एक लक्ष्य जीवन का।
नष्ट हो रहा प्यार सहोदर का
और अल्प हो रही जीवन की अवधि

ये समापन काल इस युग का
फैल रही हर जगह व्याधि
क्षत-विक्षत मानवता की कार्यपद्धति,
ले रहा कलयुग  समाधि ।
ले रहा कलयुग समाधि ।।

4 टिप्‍पणियां:

  1. "जब नाश मनुज पर छाता है,
    पहले विवेक मर जाता है।"
    जब-जब जीव को जकड़-जकड़
    जर्जर करती यह व्याधि।
    विश्व-विनाश विकराल-काल
    कलयुग भी साधे समाधि!

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  2. कहां है सहिष्णुता,
    किसे कहते सत्यवादिता
    प्यार बन गया है सिर्फ समझौता
    बन गया पेट भरना ही,
    एक लक्ष्य जीवन का।
    नष्ट हो रहा प्यार सहोदर का
    और अल्प हो रही जीवन की अवधि
    बहुत सुंदर , पूनम जी | आज के समय की विसंगतियों को बहुत ही कुशलता से शब्दांकित किया है आपने | खो रहे नैतिक मूल्य , निर्ममता और व्यर्थ की भागमभाग , सचमुच कलयुग की ही निशानी है | नयी रचना भी लिखिए और ब्लॉग की रौनक बरकरार रखिये | हार्दिक शुभकामनाएं|

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  3. समाधि ले ही ले अच्छा है। अवतारों को भी साथ में ले जाये। सुन्दर सृजन।

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  4. कहीं बैठे हैं!
    धर्म की आड़ में,
    भावनाओं से खेल ,
    शरीर को लूट ,मन को
    तार तार करने वाले,
    स्वयंभू नरपिशाच दरिंदे।
    अनगिनत लोगों को ले
    अपने सम्मोहन में,
    पंख हीन बना उड़ा दिया
    उन्मुक्त गगन में जैसे परिंदे।
    सही कहा आपने मानव अब जानवर होता जा रहा है हर तरफ मुसीबतें, हाहाकार देखकर यही लग रहा जैसे प्रलयकाल है कलयुग अब समाधि ले रहा है
    बहुत सुन्दर सार्थक विचारोत्तेजक सृजन।

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