सोमवार, 18 दिसंबर 2023

तट


तोड़ते रहे तुम बंदिशें ,

और समेटती रही मैं, 

बारंबार !

की कोशिश जोड़ने की,

कई बार !

पर गई मैं हार ,

हर बार !

समझ गई मैं,

क्यु हूँ  बेकरार !

समेट सकती हूं, 

पर जोड़ नहीं सकती।

जो टूट गया 

सो टूट गया । 

यही  है प्रकृति 

का  सार  ।।

पूनम 🙏🙏

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...