गुरुवार, 23 नवंबर 2017

बेटियों का क्या है कसूर!!

लड़की कमाने वाली चाहिए,
खुद का खर्च उठाने वाली चाहिए
शादी का खर्च तो आप उठाओगे ही
दरवाजे की शोभा तो बढ़ाओगे ही,
लड़की कमाऊं चाहिए,
और हमें कुछ नहीं चाहिए।

हर्षित,मुदित पिता ,
मन ही मन गदगद,इतराता।
लड़की पढ़ाई ,तो आज
दहेज की भार ना आई।

प्रफुल्लित मन, नाते-रिश्तेदारों संग,
गाजे-बाजे,ढोल-नगाड़ों के धुन पे
नाचते गाते ,बिटिया ससुराल चली
मां-बाबुल का दिल तोड़ चली।
बनी रहे जोड़ी,सबने ली बलैयां,
खुश रहो, संग शिव समान सैयां

नव युगल जोड़ी,प्यार से ओत-प्रोत,
समय उड़ चला, लगे पाखी के पर ,
धीरे धीरे समझने लगे हकीकत जिंदगी की,
सिर्फ प्यार से ना भरता पेट ,
करना होगा आखेट।

आ गई है पत्नी,हो गई है शादी
मिल गई अब सब कर्मों से आजादी।
पत्नी कमाऊं है सम्हाल लेगी,
घर बाहर की जिमेदारी ।
करेगी हमारे माँ-बाप,
भाई-बहनों की तीमारदारी।

हर छोटे बड़े जरूरतों को पूरा करते
छीन गई लड़की की आजादी,
कभी पति को खुश करे,
कभी घरवालों को,
जो होता अक्सर नाकाफी।
सब कहते लड़की कमाऊं है तो क्या?
करनी होगी पूरी अपनी सारी जिम्मेदारी।

शुरू होती यहीं से नई कहानी
शादी कर के लाना न था सिर्फ अर्धांगिनी,
चाहिए था पूरा का पूरा बैंक बैलेंस,
घर चलाये सूद में और देते रहे कैश।

पढ़ी लिखी लड़की भी है लड़के के बराबर,
       पर सुबह- शाम सुनना पड़े उसे
            तुम हो गंवार -अनपढ़।
    रोते बिसूरते कुछ करतीं अपने
          किस्मत से समझौता,
      तो कुछ हिम्मत वाली होतीं
         विद्रोह करने को मजबूर।
        इनमें भी कमजोर ,अपने को
           कर लेतीं दुनिया से दूर।
 
     बेटी तो बेटी है,उसका क्या कसूर
        कल, आज या कल हो,   
        यही है समाज का दस्तूर।।
पर हक के लिए एक जुनून चाहिये,
आसमां को भी लाएंगे जमीं पर
सिर्फ बेटियों पे हमें गुरुर चाहिए।।
पूनम🌼

गुरुवार, 16 नवंबर 2017

दिल का रिश्ता!!


टूट गया है रिश्ता दिल के पन्नों पे
क्या लिखे ,क्या क्या लिखें अश्कों से,
पैबंद भी लगता है फटे थोड़े पे,
तार तार हो चुका है जो,
जुड़ ना सकेगा वो आम डोरे से,

कोशिश की अनवरत फटे छिपाने की
कभी इधर सिला, कभी उधर जोड़ा,
कोशिशें नाकाम हुई
समतल दिखाने की।
जार जार हुआ,
लहू लुहान हुआ
गम भी अपार हुआ,
टुकड़े हुए दिल के बार बार,
पर कुछ ना हाथ आने की।

कर सर्वस्व न्योछावर भी
पा सकी, ना कभी प्यार ,
ना कोई अधिकार!
ना मान, ना मनुहार।
थक चुके कर  इजहार।।

कहलाती हैं 'अर्धांगिनी '
पर शब्द का भी नहीं है अधिकार ,
'भगवान' नहीं,सिर्फ हो तुम 'नर'
हम भी हैं नारी,
हर सुख के अधिकारी
सब पे भारी, सिर्फ नारी ,
नहीं तुम्हारी आभारी।
पूनम😒

शनिवार, 11 नवंबर 2017

सांसारिक वृक्ष!!


माँ! दरख़्त एक!
जिसकी शाखाएँ अनेक,
जितनी शाखा, उतने राह
सबकी अपनी जिंदगी,अपनी चाह।
पर जुड़े हैं सब एक ही दरख़्त से,
रखे सारे शाखाओं को ,
अपने सीने से लगा कर।
ऊपर उठती शाखा,
नीचे गिरती शाखा।
हर एक को संभालती,
प्रत्येक के बोझ को उठाती,
हर के सुख-दुख को संभालती।
माँ, अपने सारे दर्द को दबाती
तन कर खड़ी है दरख़्त बन कर।

टहनियां भी पकड़े रहती हैं
अपने दरख़्त को तब तक,
वो उठा रहीं उनका बोझ जब तक,
उन्हें भी कभी दिख जाता
अपने दरख़्त के दर्द,
सहला देते अपनी हरी पत्तियों से।
सर्दी, गर्मी,पतझड़,वसन्त,वर्षा
हर ऋतु को झेलती ,
फिर भी रही हर्षा।
दरख़्त तो खुश रहती
सिर्फ अपने झूमते ,
हरे टहनियों को देख।

पर इन टहनियों को नहीं दिखता,
खड़ी है अटल,अडिग क्यों दरख़्त
क्योंकि 'तुम' हो इसके
संबल पुख्त,तुम यानी
'पिता' उन टहनियों के,
'पति' उस दरख़्त के,
जिसने रखा है 'चेतन' सब को,
'खुद' जड़ बन कर!
हां जड़ ही तो हो तुम,
प्रफ्फुलित सब,अगर सिंचित तुम।
दिखे सब को हरे दरख़्त,
शाखाओं की हरियाली,
पर 'मूल' तो हो तुम।।

जुड़े हो उन शाखाओं से,
दरख़्त के माध्यम से ,
खुद जमींदोज रह कर,
धूल धुसरित रह कभी सामने न आये।
रहे खुद में ही ,खुद बनाये अपनी राह,
कभी रखी न कोई चाह,
ना भरी कोई आह।
पकड़े रहे भूमि को कस कर,
सिर्फ पनपाने को,
महकाने को, बगिया -संसार।

ये टहनी! देखो उसे,
जिससे लिपटे हो,
उसके वश में हो तो वो सदैव
तुम्हारे किस्मत को संवारती रहे,
देखो उसे ,जो थाम रखा है,
तुम्हारे पावँ के नीचे की जमीं को
खुद उसमें हो कर समाहित,
कर रहा तुम्हें प्रस्फुटित।
खूब उठो,लहलहाओ,चुमों आसमां को,
भूलो ना कभी दरख़्त और उस मूल को,
जिसने बनाया तुम्हें ....
दुनिया में सदैव गतिशील रहने को।।
पूनम❤️

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...