गुरुवार, 20 जून 2019

बेघर !!


चले जा रहे है....

कहाँ ?
पता नही.....
किसी ने पूछा?
घर जा रहे हो,
घर....कैसा घर,
घर क्या सिर्फ
चार दीवार होते हैं।
जहां,सिर्फ सनाटा,
खड़े चार दीवार ,
फिर भी चारों अकेले
वृहद खालीपन,
 बेटी ने कहा ,
मेरे 'घर'आ जाओ...
पति ने कहा,...
मेरे घर आ जाओ...
फिर कानों में जोरदार गूँज,
घर, मेरा घर कहां.......
 घर को चलाते,चलाते
मैं बेघर...........
नहीं है कोई घर मेरा !!
जा रही फिर क़ैद में चार दीवारों  की।।
                   पूनम🤔

3 टिप्‍पणियां:

  1. सही है, चार दीवारों के घेरे में घर नहीं होता। घर तो वहां होता है जहां ममता की मंजूषा, वात्सल्य की वाटिका और करुणा का क्रोड़- अपनी सरस सुधा से समस्त कुल को सिंचित करनेवाली घरवाली होती है।

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  2. यूँ नारी के बिना कोई घर नहीं होता फिर भी असलियत ये है कि उसका अपना कोई घर नहीं होता | फिर भी चारदीवारी को घर बनाने की क्षमता बस उसी में है | मार्मिक रचना !

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