सोमवार, 18 जून 2018
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तट
तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं, बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ बेकरार ! ...
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चले जा रहे है.... कहाँ ? पता नही..... किसी ने पूछा? घर जा रहे हो, घर....कैसा घर, घर क्या सिर्फ चार दीवार होते हैं। जहां,सिर्फ सनाटा...
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तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं, बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ बेकरार ! ...
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बरसने से तुम्हारे, धरती ही गीली नहीं होती, गीला होता है कितनों का मन! जो चाह कर भी बरस ना पाते। ना बरसने वाले बादल की गर्म...
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