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तट
तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं, बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ बेकरार ! ...
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वादा किया, कभी रुख़सत न होंगे अनजाने राह पे दर्दे दिल बयां हुई।। हाले दिल नहीं सबका एक सा, हमारी दिले बयान सरेआम हुईं।। ख्वाब देखना भी...
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बरसने से तुम्हारे, धरती ही गीली नहीं होती, गीला होता है कितनों का मन! जो चाह कर भी बरस ना पाते। ना बरसने वाले बादल की गर्म...
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ख्वाहिशें ना होतीं ..... जो दिखाये न हो ते तुमने, हर एक हसीन ख्वाब ।। लालसा ना होती .... जो पूरे ना करते तुम, मेरी ह र एक अरम...
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