गुरुवार, 16 नवंबर 2017

दिल का रिश्ता!!


टूट गया है रिश्ता दिल के पन्नों पे
क्या लिखे ,क्या क्या लिखें अश्कों से,
पैबंद भी लगता है फटे थोड़े पे,
तार तार हो चुका है जो,
जुड़ ना सकेगा वो आम डोरे से,

कोशिश की अनवरत फटे छिपाने की
कभी इधर सिला, कभी उधर जोड़ा,
कोशिशें नाकाम हुई
समतल दिखाने की।
जार जार हुआ,
लहू लुहान हुआ
गम भी अपार हुआ,
टुकड़े हुए दिल के बार बार,
पर कुछ ना हाथ आने की।

कर सर्वस्व न्योछावर भी
पा सकी, ना कभी प्यार ,
ना कोई अधिकार!
ना मान, ना मनुहार।
थक चुके कर  इजहार।।

कहलाती हैं 'अर्धांगिनी '
पर शब्द का भी नहीं है अधिकार ,
'भगवान' नहीं,सिर्फ हो तुम 'नर'
हम भी हैं नारी,
हर सुख के अधिकारी
सब पे भारी, सिर्फ नारी ,
नहीं तुम्हारी आभारी।
पूनम😒

1 टिप्पणी:

  1. " 'दिल के रिश्तों' में कोशिशों का यही सिला होता "
    मुआ जितना ही कामयाब होती है उतनी ही नाकाम दिखती!
    ..........भावों का निर्बंध निश्छल पावन प्रवाह, प्रणयी पुरुष को भिगोते परिणीता के मन की लहरों का उछाह!!! वाह! वाह!! बहुत भावविह्वल और दिल को सहलाती रम्य रचना. आपकी सृजन शीलता को नमन और बधाई!!!

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