रविवार, 3 सितंबर 2017

काश आपने 'बेटा' नहीं 'बेटी' बनाया होता!!



शादी के कुछ दिनों बाद
जब हो गई ससुराल में आबाद
बिटिया ने पूछा,
माँ अगर करना ही था,
पराया हमें,
बनाना था उस घर को अपना
तो बचपन से ही ये बात बतानी थी ना,
एक अनजाने घर के लिए करना होगा
अपने घर को पराया,
ये बातें समझानी थी ना।

आता है याद
जब भी तुम कुछ कहने को होती,
शादी-ब्याह की बात ।
झट पापा डांट लगाते तुम्हे,
चुप करो मत करो फालतू बकवास।
बेटी नहीं,बेटा है ये
पढ़- लिख बनना है,इसे कुछ खास।

मुझे भी माँ तुमपे गुस्सा आता,
क्यों करने कहती ये मुझे काम,
प्यार नहीं करती है मुझको
दूर भेजने का लेते रहती नाम।

पापा कितने अच्छे हैं,
मुझे सिर्फ पढ़ाएंगे,
बड़ा बनाएंगे,
हम साथ ,साथ
आफिस चलाएंगे।

जब आई बेला शादी की
आपने सामाजिक रीति बताया,
कहते बात नहीं कोई नई
हर के जिंदगी में ये मोड़ आया।

अब जब पापा कहते
बेटा आती नहीं,
बैठ दो बातें करती नहीं,
खुश हो ना घर में अपने
रोक अपने क्रंदन जबरन
कहना पड़ता,
काश आपने हमें 'बेटा' नहीं,
'बेटी' बनाया होता।
तो मैंने भी नए रिश्ते को
आसानी से अपनाया होता।।

माँ के अस्फुट सलाह ही
आज आ रहे काम,
समझ आती है,
अब सारी बातें,
मां कहती थी क्यों ऐसा।
क्योंकि वो तो खुद है भुक्तभोगी,
इन सब परिस्थितियों से गुजरी होगी।
कितने आराम से आपके घर को
अपना बनाया होगा।।

पर आप नहीं समझ सकते पापा,
आपने अपना घर छोड़ा नहीं
आपने सीखा नहीं ,
दूसरे घर को अपना बनाना।

माँ सही कहती पापा
एक लड़की ही जानती है
पराये नीड़ को घर बनाना।
काश,आपने 'बेटा'नहीं
'बेटी ' बनाया होता।।
पूनम♥

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