धरती ! काश, मैं तुम होती
मुझ में भी तुम जैसी शक्ति होती,
कैसे सह पाती हो तुम इतने अत्याचार,
ये धरा, कहाँ से लाती हो तुम ये प्यार।।
जब सूरज तुम्हें तपाता रहता,
तुम सीने को फाड़ ,
लोगों का प्यास बुझाती रहती।
कभी बारिश तुम्हें भींगाती रहती,
कीचड़ ,माटी से आप्लावित करती।
फिर भी तुम उफ्फ तक ना करती
ये धरती कहाँ से लाती हो तुम ये शक्ति।।
कभी तुम्हारे सूंदर वस्त्रों को किया जाता तार-तार,
चीर कर ,कर दिए जाते टुकड़े हजार
वन संपदा सब काट ,लूट कर किया जाता तुम्हारा बलात्कार।
फिर भी वसुधा,तुम होती नहीं अशांत,
पड़ी रहती अटल, अमर चिर शांत।।
चलता तुम्हारे सीने पे बुलडोजर,
काट-पिट,तोड़-फोड़ कर
किया जाता तुम्हे लहूलुहान
तुम ना होती फिर भी परेशान,
बनाती रहती राह आसान।।
किसपे ना किया तुमने उपकार
शस्य श्यामल आवरण ओढ़
उपजाया सब के लिए आहार
बनी रही सब का आधार।।
बस मूक बन उठाती रही खुद ही सारे भार।
धधकती रहती हो तुम भीतर से
फिर भी होती हो सर्वदा शीतल
छुपा रखा है तुमने खनिज संपदा अपरंपार
हीरे और कोयले का भरपूर है भंडार
फिर भी ना करती तुम कोई अहंकार
भू !कहाँ से लाती हो
तुम ये शक्ति अपार,
कैसे उठाती हो सब का भार।
काश !मैं तुम होती,
मुझमें भी तुम जैसी शक्ति होती।।
पूनम🌝
मुझ में भी तुम जैसी शक्ति होती,
कैसे सह पाती हो तुम इतने अत्याचार,
ये धरा, कहाँ से लाती हो तुम ये प्यार।।
जब सूरज तुम्हें तपाता रहता,
तुम सीने को फाड़ ,
लोगों का प्यास बुझाती रहती।
कभी बारिश तुम्हें भींगाती रहती,
कीचड़ ,माटी से आप्लावित करती।
फिर भी तुम उफ्फ तक ना करती
ये धरती कहाँ से लाती हो तुम ये शक्ति।।
कभी तुम्हारे सूंदर वस्त्रों को किया जाता तार-तार,
चीर कर ,कर दिए जाते टुकड़े हजार
वन संपदा सब काट ,लूट कर किया जाता तुम्हारा बलात्कार।
फिर भी वसुधा,तुम होती नहीं अशांत,
पड़ी रहती अटल, अमर चिर शांत।।
चलता तुम्हारे सीने पे बुलडोजर,
काट-पिट,तोड़-फोड़ कर
किया जाता तुम्हे लहूलुहान
तुम ना होती फिर भी परेशान,
बनाती रहती राह आसान।।
किसपे ना किया तुमने उपकार
शस्य श्यामल आवरण ओढ़
उपजाया सब के लिए आहार
बनी रही सब का आधार।।
बस मूक बन उठाती रही खुद ही सारे भार।
धधकती रहती हो तुम भीतर से
फिर भी होती हो सर्वदा शीतल
छुपा रखा है तुमने खनिज संपदा अपरंपार
हीरे और कोयले का भरपूर है भंडार
फिर भी ना करती तुम कोई अहंकार
भू !कहाँ से लाती हो
तुम ये शक्ति अपार,
कैसे उठाती हो सब का भार।
काश !मैं तुम होती,
मुझमें भी तुम जैसी शक्ति होती।।
पूनम🌝
माँ धरती को अद्भुत उद्बोधन और धरा रूपा नारी के सहज , कौतुहल भरे सार्थक प्रश्नों को उकेरती सुंदर रचना | धरती के अनुपम योगदान को कितनी सहजता और सरलता से कलमबद्ध कर दिया ------------------
जवाब देंहटाएंकिसपे ना किया तुमने उपकार
शस्य श्यामल आवरण ओढ़
उपजाया सब के लिए आहार
बनी रही सब का आधार।।
बस मूक बन उठाती रही खुद ही सारे भार _--------
बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामना आपको आदरणीय पूनम जी ------
प्रिय पूनम जी - | ये आपकी कलम से निकली बेहतरीन रचना तो है ही , ब्लॉग जगत की श्रेष्ट रचनाओं में से एक है | धरती जैसी नारी और नारी जैसी ये पुण्य धरा | दोनों में एक जैसे ही गुण धर्म होते हैं | सार्थक रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाये |
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