सोमवार, 25 सितंबर 2017

दर्द!!


दफन है हर एक वो बात उर में,
देती है जो दर्द हर वक्त सीने में।

किया कोशिश कई बार,
करने को ,
कलम बंद पन्ने में!
पर बारम्बार आ जाते ,
तेरे अक्स नयनों में।

तसव्वुर के वो लम्हें हसीन
जुदा ना होते ख़यालों में।
इबादत माना तेरे उल्फत को.....
खुदा गवाह है ,
ना हुआ अपने नसीब में।

अधरों पे है हंसीं भी,
विश्व तो है सिर्फ गफ़लत में,
दफन है हर एक वो बात उर में,
देती है जो दर्द हर वक्त सीने में।।
पूनम😑

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय पूनम जी नारी मन की टीस को खूब सरल और भावपूर्ण शब्द दिए हैं आपने | बीते समय की यादों से उपजी मन की पीड़ा खूब बयां की आपने | सादर ,सस्नेह शुभकामना ------

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तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...