गुरुवार, 2 जून 2022

वक़्त

 वक़्त वक़्त की बात है ……

एक मौलवी साहब थे ।

एक दिन मुर्ग़ा बेचने वाला आया ,मौलवी साहब के पोते ने कहा दादा दादा मुर्ग़ा ले दो ।दादा ने पूछा क्या भाव, मुर्ग़े वाले ने कहा, टके सेर बाबा।दादा की अण्टी में उस वक़्त एक टका ही था ।। दादा ने तुरंत कहा ,तौबा मियाँ , तौबा ये तो बहुत महँगा है ।

कुछ महीनों  के बाद फिर मुर्ग़े वाले को देख पोता मचला । मुर्ग़े वाले ने कहा,५ रुपए सेर…..। पोते  ने सोचा आज तो बिल्कुल ही नहीं ख़रीदेगा दादा।लेकिन,दादा तो ख़ुश हो कर बोला अरे ले लो ,ले लो बड़ा सस्ता दे रहा है…. पोता आश्चर्य से दादा को देखता है । दादा पैसे देने लगा… आज दादा की अंटी में १० रुपए हैं…….।।

बुधवार, 1 जून 2022

आदत !!

 बचपन मे एक कहानी सुनी थी......

दो चिड़िया थे। 

एक को पिंजरे मे रहने की आदत थी और दूसरे को उन्मुक्त आकाश में कुलांचे भरने की।  दोनों मे प्यार हो गया। बहुत प्यार करते थे  दोनों एक दूसरे से। उन्मुक्त गगन में विचरने  वाले को पिंजरा कतई रास ना आता और पिंजरे में रहने वाली ने तो अब अपना घर बसा ही लिया था.......

     ना उसने आकाश छोड़े, ना उसने  पिंजरा......😑

 

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

स्व!!

हीं बनना अहिल्या जैसी सती सावित्री,
कूट-योजना की भागी भी मैं,
और शापित भी मैं.....
चरणों के धूल खाने को ,
शीला खंड बन रहूँ भी मैं....

क्यूं मैं ,अपनी शक्ति दे कर,
किसी को इंद्र बनाऊँ,
सहस्त्रो रानियों के बीच बन पटरानी
ना बनना मुझे इंद्राणी

वन वन भटक, ति कीधर्मीनी हो कर भी,
अरमान नहीं, देने की अग्नि परीक्षा.....
संगिनी सिया से ज्यादा,
रजक की बातों का विश्वास,
बन कर राम की सीता,
नहीं काटना मुझे वनवास,

द्रौपदी बनने की कभी चाह नहीं,
पाँच पाण्डवरिणी ...पर!
चीर हरण ...... हुआ एक बार,
जिसके रक्षक कृष्ण हुए,
पर मन का हरण ......हुआ बार बार ,
उसका रक्षक कौन बना. ...

सर्वगुणी रावण की मंदोदरी कभी ना बनूँ,
नहीं चाहिए सोने की लंका,
पर स्त्री पर कुदृष्टि,
लंका पर कराया अग्नि वृष्टि।
विनाश काले विपरित बुद्धी,
हरि के हाथों हो गईं सिद्धि

हीं चाहिए मुझे इन ली ,
पुरुषों का साथ ,
जिनके,बल के साये में,
पूर्ण सक्षम स्त्री ,सर्वदा रही कुंठित
नर अपने दोषों को ढक,
किया सिर्फ उसे महिमा मंडित

नहीं बनाओ देवी।।

मुझे रहने दो, स्व!

नहीं बनना सिर्फ धी ,माँ ,भगिनी, भार्या,

नहीं चाहिए मुझे कोई तमगा. ...

जैसी भी हूँ, जो भी हूँ 

अपने आप में संपूर्ण हूँ,

कामिनी हूं मैं!!

मुझे बस, "मैं", ही रहने दो ...... ,

बस, मैं ही रहने दो ।।


मंगलवार, 11 जनवरी 2022

विलीन !

 पयोनिधि, असंख्य पयस्वनी संग,

नित्य उल्लसित, आवेगीत होने वाले,

अपने दर्प में चूर तुम,

क्या जानो तटिनी....

कितने ठोकर खा बहती हैँ।

सरल,सरस,सलिल नीर लिए,
तट से बंध, रहने वाली सरी,
कब,क्यों,किस वेदना में...
तड़प,तडप कर दर्द सहती है।

अट्हास का गर्जन करने वाले पयोनिधि,
कब तुमने तरनी के तरंगों को जाना है।
विस्तरित कर सिर्फ अपना किनारा,
कहाँ तुमने उसके दायरे को माना है।

कर अपना सर्वस्व न्योछावर,
सरी ने खुद को विलीन किया ।
फिर भी  छलकते तरंगिनि के
दर्द को  क्या तुमने पहचाना है।

खुद ही पथ बना कर चलती,
पग पग  पर  तृप्त सभी को करती
पत्थर तट पर सर,पटक पटक
तटिया भी तो थकती है।
कर पापों को सबके साफ,
खुद मलिन रहना ही तो सरी की नियति है।

बाढ़, सूखे का दंश सहती
सारे दुख दर्दों को समेटे,
गंगा,यमुना,सरस्वती जो भी हो नदिया.....
अपने दर्द को किससे बांटे ,

जलनिधि के लिए  सिर्फ एक धार ही है वो।
न कोई मान, न मर्यादा,
नद की ना है अस्तित्व कोई....
सुख कर धूल धूसरित हो,
मिट्टी में मिल जाना ....
और सागर में समा जाना है
तट से बंधी.  . जन्म से, तटिनी को,
हो जलधि में ....विलीन जाना है..
.....विलीन हो जाना है।।
                   पूनम😑

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

ख्वाहिश

सूरज की रोशनी तले,जीते हुए, 

चांद भी तो निरा अकेला है।

 रंगीन ख्वाबों तले सब मन अकेला है, 

शराफत के चादर तले हर इंसान नंगा है। 

 बस ख्वाहिश है ये ख़ुदा, 

तन से तो नंगा बनाया ही है तूने, 

बस मन और भावों से नंगा मत बनाना। 

हर चमकता चीज सोना नहीं होता, 

बस इतनी समझ दे दो।  

ऐसा ना हो कि दूर के सुहावने ढोल के चक्कर में, 

अपना राग भी टूट जाए। ।

     पूनम 🤗


शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

मन औऱ मौसम

फूल खिलते तो है,
पर मुरझाए से
तितलियां उड़ती तो हैं,
सुस्त सी,
धूप भी खिलती है,
पर मंद सी
बादल भी आते हैं,
पर शुष्क से।
सावन भी आया तो है,
पर  है सिर्फ बेचैनी सी।
क्या मौसम ही ऐसा है।
या दिल में हैं दर्द सी।

            पूनम 😐

शनिवार, 17 जुलाई 2021

बात ना बनी ।।

ज आओ ना जानम

बना लें बिगड़ी बात, 

करें बातें दिल खोकर।

दिन कितने हो गए

किए, एक वो बात,

जब होता था ना कोई राज

जाओ सनम ,
कर लें बातें मन भर।

हो जाएं एकाकार 

बस यही तो कहा था मैंने
जाने  क्या हुआ  ऐसा ,


बदल दिए उसने अपने अंदाज,
बं ना  हो पाई मेरी आंख 

हमेशा हमेशा के लिये 
छोड़ दिया मेरा साथ .....नींद ने ।।

         पूनम 😐

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...