शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

स्व!!

हीं बनना अहिल्या जैसी सती सावित्री,
कूट-योजना की भागी भी मैं,
और शापित भी मैं.....
चरणों के धूल खाने को ,
शीला खंड बन रहूँ भी मैं....

क्यूं मैं ,अपनी शक्ति दे कर,
किसी को इंद्र बनाऊँ,
सहस्त्रो रानियों के बीच बन पटरानी
ना बनना मुझे इंद्राणी

वन वन भटक, ति कीधर्मीनी हो कर भी,
अरमान नहीं, देने की अग्नि परीक्षा.....
संगिनी सिया से ज्यादा,
रजक की बातों का विश्वास,
बन कर राम की सीता,
नहीं काटना मुझे वनवास,

द्रौपदी बनने की कभी चाह नहीं,
पाँच पाण्डवरिणी ...पर!
चीर हरण ...... हुआ एक बार,
जिसके रक्षक कृष्ण हुए,
पर मन का हरण ......हुआ बार बार ,
उसका रक्षक कौन बना. ...

सर्वगुणी रावण की मंदोदरी कभी ना बनूँ,
नहीं चाहिए सोने की लंका,
पर स्त्री पर कुदृष्टि,
लंका पर कराया अग्नि वृष्टि।
विनाश काले विपरित बुद्धी,
हरि के हाथों हो गईं सिद्धि

हीं चाहिए मुझे इन ली ,
पुरुषों का साथ ,
जिनके,बल के साये में,
पूर्ण सक्षम स्त्री ,सर्वदा रही कुंठित
नर अपने दोषों को ढक,
किया सिर्फ उसे महिमा मंडित

नहीं बनाओ देवी।।

मुझे रहने दो, स्व!

नहीं बनना सिर्फ धी ,माँ ,भगिनी, भार्या,

नहीं चाहिए मुझे कोई तमगा. ...

जैसी भी हूँ, जो भी हूँ 

अपने आप में संपूर्ण हूँ,

कामिनी हूं मैं!!

मुझे बस, "मैं", ही रहने दो ...... ,

बस, मैं ही रहने दो ।।


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