मंगलवार, 12 सितंबर 2017

सपना तो सपना ही है !!


क्या कहूँ हालें बयान दिल का
सुबक सुबक,कसक कसक
धड़क धड़क,तड़प तड़प
छटपटात भरपूर
क्योंकि इसे समझने वाला
बैठा है बहुत दूर।

दिन गुज़र जाता है
गाहे बगाहे जरूरत में,
रातें होती है इतनी लंबी
काटें नहीं कटती,
यही है फितरत में।।

सोचा था.....
देखे थे सपने।
होंगे सिर्फ मैं और तुम
एक दूसरे के बांट लेंगे
हर खुशी और गम ।।
पल भर भी ना जाएंगे
एक दूजे से कंहीं दूर।।

एक सुर होगा,एक ताल होगी
एक ही लय होगी,दिल के धड़कनों की
आंखें हीं समझ लेंगी बातों को,
ना काम होगा जुबान की।

पर क्या पता था, सपना तो सपना होता है
हकीकत में ये सब मुमकिन ना होता है।

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

बेवफा !!


जिंदगी भी बड़ी अजीब है
हंसने ही नही देती।
रोने भी नहीं देती
नदी के हर लहरों को
किनारा नहीं मिलता।।
हर प्रेयसी को उसका
सहारा नहीं मिलता।

माना मैं नहीं तुम्हारे काबिल
पर बेवफाई का भी आस न था,
हर राह चलते पे, तुम झुक जाओगे
ऐसा भी अंदाज न था।
खुदगर्ज तुम,देखी थी बेरुखी तुम्हारी
कई बार,
सरेआम जिल्लत करना भी था
तुम्हारे आदत में बेशुमार ।
पर ये ना था भान,
खुलेआम ,सरेबाजार ,
हमारे रिश्ते को करोगे जार जार।।

हंस लो जी भर के
मेरी बेबसी पर,
मेरी हर बून्द आंसूं के
तुम्हारी खुशी की दुआ करेंगे।
मुक्त हो तुम,कोई नहीं बंदिश,
ना ही हमें कोई रंजिश ।
जी लो अपनी जिंदगी खुल कर
कोई एक तो रहे खुश हो कर।

लाचार मैं , तुम्हें प्यार करने का
चाह रखती हूं,
पाने का अधिकार नहीं।
कभी साथ हंसने ,रोने वाले
आज एक दूसरे पे हंसते रोते हैं।

सूखे पत्तों की तरह गिर जाएंगे
तुम्हारी साखों से,
अपने नए हरी पत्तियों के साथ आबाद रहना।
पर इतना जरूर याद रखना,
बेवफाई सिर्फ 'वफ़ा'करने वालों को ही
नहीं मिलती,
'बेवफा,' को भी ये अपने आगोश में ले लेती हैं।।
पूनम💔

बुधवार, 6 सितंबर 2017

तुम्हारे बिना !!



मैंने भी सीख लिया है,
जीना! तुम्हारे बिना।
हर पल और रात दिन,
बिताना! तुम्हारे बिना।

खुश तो बहुत हो तुम
अपनी दुनिया में,
मेरे बिना।
सीख लिया है मैंने भी,
खुशी में तुम्हारी,
खुश होना! तुम्हारे बिना।

हर सुख- दुख में सीख गए
खुद को बहलाना,
आ गया अब रोकना
आँसूओं का बहना,
सीख गए गम को,
पीना! तुम्हारे बिना।

सपने भी आने लगे,
नींद भी आने लगी
सीख गए जाग-जाग कर,
सोना! तुम्हारे बिना।

बातें तो बहुत थीं
जज्बात भी बहुत थे
सीख गए निःशब्द बात
करना! तुम्हारे बिना।

बिता दी जिसकी ,
याद में जिंदगी,
आई ना उसे याद,
हमारी कभी
सीख गए मर-मर कर
जीना! तुम्हारे बिना।

जंग लोहे में लगती है
मिट्टी में नहीं
फौलादी कठोर बनो तुम,
हम क्यों बुने ताना- बाना
मैं तो मिट्टी की बनी
मिट्टी में ही मिल ,
जाना ! तुम्हारे बिना।

नजरों की तुम्हारी तुच्छ मैं
सिख गई सर उठा कर ,
चलना ! तुम्हारे बिना।
मैंने भी सीख लिया है
जीना! तुम्हारे बिना।।
पूनम😶

रविवार, 3 सितंबर 2017

काश आपने 'बेटा' नहीं 'बेटी' बनाया होता!!



शादी के कुछ दिनों बाद
जब हो गई ससुराल में आबाद
बिटिया ने पूछा,
माँ अगर करना ही था,
पराया हमें,
बनाना था उस घर को अपना
तो बचपन से ही ये बात बतानी थी ना,
एक अनजाने घर के लिए करना होगा
अपने घर को पराया,
ये बातें समझानी थी ना।

आता है याद
जब भी तुम कुछ कहने को होती,
शादी-ब्याह की बात ।
झट पापा डांट लगाते तुम्हे,
चुप करो मत करो फालतू बकवास।
बेटी नहीं,बेटा है ये
पढ़- लिख बनना है,इसे कुछ खास।

मुझे भी माँ तुमपे गुस्सा आता,
क्यों करने कहती ये मुझे काम,
प्यार नहीं करती है मुझको
दूर भेजने का लेते रहती नाम।

पापा कितने अच्छे हैं,
मुझे सिर्फ पढ़ाएंगे,
बड़ा बनाएंगे,
हम साथ ,साथ
आफिस चलाएंगे।

जब आई बेला शादी की
आपने सामाजिक रीति बताया,
कहते बात नहीं कोई नई
हर के जिंदगी में ये मोड़ आया।

अब जब पापा कहते
बेटा आती नहीं,
बैठ दो बातें करती नहीं,
खुश हो ना घर में अपने
रोक अपने क्रंदन जबरन
कहना पड़ता,
काश आपने हमें 'बेटा' नहीं,
'बेटी' बनाया होता।
तो मैंने भी नए रिश्ते को
आसानी से अपनाया होता।।

माँ के अस्फुट सलाह ही
आज आ रहे काम,
समझ आती है,
अब सारी बातें,
मां कहती थी क्यों ऐसा।
क्योंकि वो तो खुद है भुक्तभोगी,
इन सब परिस्थितियों से गुजरी होगी।
कितने आराम से आपके घर को
अपना बनाया होगा।।

पर आप नहीं समझ सकते पापा,
आपने अपना घर छोड़ा नहीं
आपने सीखा नहीं ,
दूसरे घर को अपना बनाना।

माँ सही कहती पापा
एक लड़की ही जानती है
पराये नीड़ को घर बनाना।
काश,आपने 'बेटा'नहीं
'बेटी ' बनाया होता।।
पूनम♥

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

धरती!!

धरती ! काश, मैं तुम होती
मुझ में भी तुम जैसी शक्ति होती,
कैसे सह पाती हो तुम इतने अत्याचार,
ये धरा, कहाँ से लाती हो तुम ये प्यार।।

जब सूरज तुम्हें तपाता रहता,
तुम सीने को फाड़ ,
लोगों का प्यास बुझाती रहती।
कभी बारिश तुम्हें भींगाती रहती,
कीचड़ ,माटी से आप्लावित करती।
फिर भी तुम उफ्फ तक ना करती
ये धरती कहाँ से लाती हो तुम ये शक्ति।।

कभी तुम्हारे सूंदर वस्त्रों को किया जाता तार-तार,
चीर कर ,कर दिए जाते टुकड़े हजार
वन संपदा सब काट ,लूट कर किया जाता तुम्हारा बलात्कार।
फिर भी वसुधा,तुम होती नहीं अशांत,
पड़ी रहती अटल, अमर चिर शांत।।

चलता तुम्हारे सीने पे बुलडोजर,
काट-पिट,तोड़-फोड़ कर
किया जाता तुम्हे लहूलुहान
तुम ना होती फिर भी परेशान,
बनाती रहती राह आसान।।

किसपे ना किया तुमने उपकार
शस्य श्यामल आवरण ओढ़
उपजाया सब के लिए आहार
बनी रही सब का आधार।।
बस मूक बन उठाती रही खुद ही सारे भार।

धधकती रहती हो तुम भीतर से
फिर भी होती हो सर्वदा शीतल
छुपा रखा है तुमने खनिज संपदा अपरंपार
हीरे और कोयले का भरपूर है भंडार
फिर भी ना करती तुम कोई अहंकार

भू !कहाँ से लाती हो
तुम ये शक्ति अपार,
कैसे उठाती हो सब का भार।
काश !मैं तुम होती,
मुझमें भी तुम जैसी शक्ति होती।।
पूनम🌝

बुधवार, 30 अगस्त 2017

कभी तो एहसास कर लो!!


कभी तो एहसास कर लो
ना किसी कारण
ना किसी लालच
औपचारिकताओं से परे,
कभी तो दिल से याद कर लो।।

अच्छा नहीं लगता
बार बार याद दिलाना,
की हम भी हैं तुम्हारे
तुम्हारे सिवा कुछ भी ना हमारा,
कभी तो इन बातों का
एहसास कर लो।
कभी तो दिल से याद कर लो।।

माना दुनिया बहुत बड़ी है तुम्हारी
थोड़ी सी जगह तो रख लो हमारी,
कभी तो हमारे दर्द को भी
आत्मसात कर लो।
कभी तो दिल से याद कर लो।।

सब आएंगे ,जाएंगे
अपने अपने मतलब से
मेरी तो जिंदगी ही तुम हो,
बेमतलब भी कभी फ़रियाद कर लो।
कभी तो दिल से याद कर लो।।

यूँ तो ख़ुश हो तुम अपनी
हसीन जहां में
हर पल बेसब्र,
बेफिक्र लुटाते हो
अपनी उल्फत।
थोड़ा तो कभी लिहाज कर लो
कभी तो दिल से याद कर लो।
पूनम💓

सोमवार, 28 अगस्त 2017

गीता वाणी!!




स्वयं रणछोड ने ,
रण छोड़ने को आतुर पार्थ को,
गीता की वाणी में समझाया,
मानव धर्म अपनाने को उकसाया।
सत्व,रज ,तम तीन गुणों को
अच्छे से बतलाया।।

सत्व गुण है सुख का श्रृंगार
राजो गुण आसक्त कर्म का आहार
तमो गुण किसी के दुत्कार फलस्वरूप
ढक देता है ज्ञान को
बढ़ जाता प्रमाद और अहंकार।

उतपन्न हुआ जब देह में विवेक
इंद्रियों में आई चेतनता,
खिल खिल आये सारे गुण
कहलाये ये सत्व गुण।।

बढ़े जब राजो गुण,
लोभ,मोह,कर्मों में आसक्ति आये
विषय भोग की लालसा बढ़ जाये
सकाम भाव से कर्मों का प्रारंभ
मन को अशांति दिलाये।।

तमोगुण का आया काल,
विनाश काले विपरीत बुद्धि
होता सर्व नाश।
हुआ अंतः करण में अप्रकाश,
इंद्रियों का बढा प्रमाद
और निद्रा हो गई नाश।
क्षति न हूई दूजे की
हूआ स्व विनाश ।।
पूनम✍

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...