सोमवार, 21 अगस्त 2017

ढूंढ़ते रह जाओगे मेरे जैसा

अश्क न ढलके नयनों से
लहरें आये कितनी  मन के समंदर में
पाया है  हमने जिया ऐसा
ढूंढते रह जाओगे मेरे जैसा।

कहते हैं कोमल हृदया ,कोमलांगी,
अर्धांगनी सिर्फ एक की
पर बोझ तो उठाना हैं ,
हर बेबसी की
तुम कहाँ से लाओगे दिल ऐसा
ढूंढते रह जाओगे मेरे जैसा

गम की पोटली छिपा हृदय तल में
खुशियों का चादर बिछाती,
निराश नयनों के तालाब में
आशा के पंकज खिलाती,
मानो प्राची की लालिमा हो ऐसा
ढूंढते रह जाओगे मेरे जैसा।

मोहन लीला



रास लीला भाए मन मोहना
   राधा हो संग और गोपियाँ।
   चंचल, चपल,चतुर कान्हा,
   मोहत,रिझावत,सजावत
   मन बहकावत,छलिया
   फिर बन जात द्वारकाधीश।
   तड़पत हिया,कहत गोपियाँ
    ऊधो, मन नाहीं दस बीस।।

        हर्षित,उल्लसित,
         मुदित रुक्मिणी,
      श्याम आयो,हमारे भयो!
          कर नख शिख श्रृंगार,
            भोग छप्पन सजायौ
       एक भी माखन चोर ना भायो।
     राधा तो हरि के आत्मा समायो।।

      बस पटरानी बन रुक्मिणी
      श्याम निहारत भरपूर,
      आज भी रहत द्वारकाधीश में
       हरि से कोस भर दूर।
करो अपराध क्षमा गिरीश हमरो,
होने दो दीदार।।

      छलिया तेरे तो दिल हजार हैं,
     आपन तो एक ही,
हो जात चकनाचूर।
     प्रभु करो एक ही कृपा
     नयनों से ना जाओ तुम दूर।।
       पूनम💓

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...