रास लीला भाए मन मोहना
राधा हो संग और गोपियाँ।
चंचल, चपल,चतुर कान्हा,
मोहत,रिझावत,सजावत
मन बहकावत,छलिया
फिर बन जात द्वारकाधीश।
तड़पत हिया,कहत गोपियाँ
ऊधो, मन नाहीं दस बीस।।
हर्षित,उल्लसित,
मुदित रुक्मिणी,
श्याम आयो,हमारे भयो!
कर नख शिख श्रृंगार,
भोग छप्पन सजायौ
एक भी माखन चोर ना भायो।
राधा तो हरि के आत्मा समायो।।
बस पटरानी बन रुक्मिणी
श्याम निहारत भरपूर,
आज भी रहत द्वारकाधीश में
हरि से कोस भर दूर।
करो अपराध क्षमा गिरीश हमरो,
होने दो दीदार।।
छलिया तेरे तो दिल हजार हैं,
आपन तो एक ही,
हो जात चकनाचूर।
प्रभु करो एक ही कृपा
नयनों से ना जाओ तुम दूर।।
पूनम💓
राधा , रुक्मिणी और कृष्ण की त्रिवेणी का विलक्षण मनभावन चित्रण! भारतीय दर्शन में राधा सूक्ष्म, रुक्मिणी स्थूल और कृष्ण इस सूक्ष्म स्थूल सृष्टि के कारण रूप में प्रतिष्ठित हैं. द्वारका में रुक्मिणी के द्वारकाधीश से दूरी का कारण दुर्वाषा का शाप है. भावनाओं के अद्भुत प्रवाह को शब्दों ने अपनी चित्रात्मकता में बान्ध लिया है. मन की उछाह मनुहार और निहोरा बनकर रुक्मिणी के कंठों से फूटी है जो स्वयं प्रेम प्रसंग में गौरा के पूजन के बहाने गौरा के सामने कृष्ण से परिणय सूत्र में बन्ध गयी थी. बधाई!
जवाब देंहटाएं