सोमवार, 21 अगस्त 2017

गाँव की खुशबू


बड़े दिनों बाद आज गाँव जाना हुआ
घर घर जाने पे कुछ पुराने
कुछ नए चेहरे को पहचानना हुआ।
बड़ी अच्छी लगी वो पुराने खेतों के मुंडेर
पर ना सुहाया जो 'घर'बंट गए ढेर।

गाँव के बुजुर्ग के जगह
खड़ा वो पुराना पीपल
सारे बुजुर्गों की मधुर याद दिलाता रहा,
उसके आस पास खेलते छुपम -छुपाई
जैेसी बचपन की यादें
धूल धूसरित चलचित्र की तरह घूमता रहा ,
बड़े दिनों बाद आज गाँव जाना हुआ।।

सावन के महीने में,
वो भी मायके का गावँ
धान के खेतों की हरियाली
पोखरों में बहता कल-कल पानी,
मिट्टी की सोंधी सी खुशबू
और गौशाले की महक,
पर फिर भी रह जाती
दिल में कहीं वो कसक,
खो गई है कंहीं
प्यारे रिश्तों की वो खनक।।

नहीं रहा सोंधापन
अब लकड़ी के चूल्हों का,
ना रही दूध में वो लाली,
जहाँ मिलते थे
मिश्री और माखन खाली।
हलवे की खुशबू
जो फैलती थी दूर दूर
प्यार फैलाने को,
कैद हो गए अब सारे किरदार
डेयरी बंद पैकेट और
चटपटे मसालेदार नमकीन को।

गाँव का अधछल शहरीकरण
जिसने लोगों के भोलेपन को भुलाया,
छल कपट के गरल
को खूब है फैलाया।
दुख हुआ ,
कंही चटक गया अंतर्मन मेरा,
जिसने बचपन की भोली यादों को,
रिश्तों की वो खुशबू ,वो मिठास
को अभी तक सीने से था लगाया।
बड़े दिनों बाद आज गाँव जाना हुआ।।

इस नवनिकरण के बीच भी
सावन के महीने में
बेटियों को याद करना खूब भाया,
हर घर से बेटियों को
सावन की सौगात जाना,
बहुओं के मायके से उनका तोहफा आना,
बड़ा ही रौनक लगाया।
ऐसा लगा जैसे ये सावन का महीना नहीं,
बेटियों का महीना आया।
बड़े दिनों के बाद आज गाँव जाना हुआ।।
पूनम💥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...