शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

सबला नारी !!



देख कर आज की पीढ़ी को,
मन में आता है अक्सर।
ये नारी अबला नहीं...सबला हैं,
स्वछंद,उन्मुक्त, उत्साहित,जैसे लगे हों पर।

कुछ हद तक बेड़ियां खुली हैं इनकी,
करने को सब कुछ हैं ठानी।
क्या समाज ने भी उसे स्वीकार करने को मानी।।

'सबला'तो हमेशा से है नारी
रही है हर युग में सब पे भारी,
सिर्फ डर था नर को ,की
छीन ना जाये उनकी ठेकेदारी।

स्त्री तो स्त्री है,अपने आप में संपुर्ण है,
जानती है वो अपने से पहले साथ वाले का पेट भरना,
सबको साथ ले कर चलना,
हर गुण से वो परिपूर्ण है।

स्त्री सम्मान को मानते पुरुष अपना अपमान,
जैसे छीन जाएगा उनका स्वामित्व,
नहीं रहेगा उनका कोई अस्तित्व।

'अर्धनारीश्वर' बनने में भी
ना समझते अपना मान।
बस उन्हें 'राम' बनने का अरमान,
कर सकें हर काल में 'सीता' का अपमान।।

जब जब रखना चाही,पुरुषों का मान
सहना पड़ा तिरिस्कार पूर्ण मर्दन।
रह जायेगी क्या ?
हर काल में 'नारी' अबला
कभी ना बन पाएगी वो सबला!!
                            पूनम💟

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