सूरज की रोशनी तले,जीते हुए,
चांद भी तो निरा अकेला है।
रंगीन ख्वाबों तले सब मन अकेला है,
शराफत के चादर तले हर इंसान नंगा है।
बस ख्वाहिश है ये ख़ुदा,
तन से तो नंगा बनाया ही है तूने,
बस मन और भावों से नंगा मत बनाना।
हर चमकता चीज सोना नहीं होता,
बस इतनी समझ दे दो।
ऐसा ना हो कि दूर के सुहावने ढोल के चक्कर में,
अपना राग भी टूट जाए। ।
पूनम 🤗
मन चंगा तो कठौती में गंगा!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना। बधाई और आभार!!!