बरसने से तुम्हारे,
धरती ही गीली नहीं होती,
गीला होता है कितनों का मन!
जो चाह कर भी बरस ना पाते।
ना बरसने वाले बादल की गर्मी,
तो करते हैं सब महसूस।
पर उन आद्र नयनों का क्या ,
किसने महसूस किया है,
उस दर्द को।।
बरस कर, खुश मन की,
खुशी को बढाने वाले ,
दर्द से भरे दिल की ,
तड़प औऱ ही बढ़ा देते हो तुम।
प्रकृति,! सौम्य और दयालु,
समृद्धि और सफलता,
प्रदान करने वाली,
सभी नुकसानों से बचाने वाली ।
पर सीमा है एक सहने की,
फटना तो लाजिमी है ना।
हे पुरुष, अब बस भी करो
नहीं है शक्ति अब और सहने की।
कितना बर्दाश्त करेगी ये प्रकृति,
हाँ पुरुष.....
कहीं अति की वर्षा,
कहीं अति की धूप ,
प्रकृति को और ना रुलाया करो,
फटेगी वो तो सारा जहाँ रोएगा।
सम्भाल लो खुद को ....इससे पहले कि ,
शक्ति का तांडव शुरू हो जाए,
औऱ शिव को आना पड़े।। ॐ। ।🙏
पूनम 😐
पुरुष को चेतावनी देती खूबसूरत भावाभिव्यक्ति और साथ ही साथ इंसान जो प्रकृति से खिलवाड़ करता है उसे भी आड़े हाथों लिया है ।
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