शुक्रवार, 11 मई 2018

दर्दे दिल....

वादा किया, कभी रुख़सत न होंगे
अनजाने राह पे दर्दे दिल बयां हुई।।

हाले दिल नहीं सबका एक सा,
हमारी दिले बयान सरेआम हुईं।।

ख्वाब देखना भी एक शगल था
अरमाने कत्ल भी अब आम हुईं।।

व्यवहार हर का होता नहीं एक
पर परख कर बातें तमाम हुईं।।

इजहार की गुलाब गईं मुरझा
प्यार से वफ़ा काफ़ूर हुईं।।

इंतजार किया उसे पाने की,
हर कोशिशें नाकाम हुईं।।

नयन थीं सब एक सी
पर अंदाजे नजर तमाम हुईं।।

बेबाक सी है हर एक तमन्ना
गुस्ताखियों में दिल बदनाम हुईं।।

इंतजार,इजहार,गुलाब,ख्वाब,वफ़ा,नशा
उसे पाने की कोशिशें तमाम हुईं सरेआम हुईं।

गुरुवार, 12 अप्रैल 2018

डर...मन का !!

जब  ही धरा पे
आई तनया..
पराई है,पराई !
पराये घर जाएगी,
इस डर के साथ
सब ने ढोल बजाई।

जाने लगी जब स्कूल,
निकल घर से,
दूर रहना परायों से,
मन में बसाया ये डर।
थोड़ी और बड़े होने पे,
कायदे सिखाते हर बात पे।
दिया जाता ये डर,
जाना है दूसरे घर।
सीख ये दी जाती हर पल,
एक भी गलत कदम पे
कुल के नाक कट जाने का डर।
गलत कदम हो किसी और का,
फिर भी जिंदगी भर तंश झेलने का डर।

अब हुआ ब्याह..
दिल था अरमानों से भरा....पर!
पराये घर से आई है....
सुन, मन ही मन गई डर।
ससुराल वालों की सेवा में,
रह ना जाये कोई कोताही
हर वक्त बना रहता ये डर।
कभी पति का डर,
कभी तानों का डर,
एक दूर होता नहीं ,
की आ जाता दूसरा डर।

अब बच्चों के लालन पालन का डर,
उनके शिक्षा और विकास का डर
बढ़ती उम्र में उन्हें
बुराइयों से दूर रखने का डर।
फिर नीड  हुआ खाली,
उड़ गए पंछी बनाने को नए घोंसले
चलो अब तो अपने आंसू पोंछ लें।
पर!अब कटेंगे दिन कैसे
इस बात का डर।।

अभी कहाँ खत्म हुई कहानी
बढ़ते उम्र की शुरू हुई कई परेशानी...
चाह होती कुछ कहने की
फिर  भी रखो मुँह बंद,
नहीं तो बच्चों का डर।
डर, डर, डर....
डर बनाम स्त्री का जीवन,
कभी ना होगा,...क्या?
इसका निराकरण!

पर...मर मर कर जीना
अब मंजूर नहीं,
अपनी कमी को
ना बनाओ अपना डर,
हौसला दिखाओ
और डर को डराओ।
डर को  खुद की
हिम्मत बनाओ।।

डर से ना तुम डरना
निर्भीक हो के बढ़ना
सुनना जरूर सबकी
करना अपने मन की
डर कंहीं और नहीं,
है तुम्हारे अंदर।
मन का डर भगाना
डर से ना तुम डरना।।
                  पूनम😯

बुधवार, 4 अप्रैल 2018

नहीं मैं कोई कवयित्री!!



कवयित्रि!......नहीं ,
मै  कहाँ कवयित्री कोई।
नहीं रचती मैं कोई कविता
मैं,सिर्फ एक 'नारी' हूँ ,
जो,सिर्फ अपने भावों से भारी हूँ ।
दिल के पन्ने से उतार ,
कर देती कलम बद्ध ,
सदाशयता से हिय के बोल।।

कौन अपना ,कौन पराया
ये जग तो है सिर्फ मोह माया।
सुख-दुख में प्लवन करती,
जीवन नैया की खेवैया हूँ मैं
सपनों की गठरी हूँ मैं,
सिर्फ एक 'नारी' हूँ मैं

चित्तवृत्ति को समझना तो दूर,
ये तुमने मुझे क्या बनाया।
दिल ने दिल के अरमानों को ना समझ
कवयित्री का ये चोला क्यों पहनाया।।

नहीं!.......मैं शब्दों से खेलती भी नहीं,
ना बुनती हूँ शब्दों का कोई जाल,
मैं तो अपने अरमानों को पहनाती हूँ
बस कुछ शाब्दिक जामा,
सजाती हूँ उन्हें कल्पना के उड़ान से,
संवारती हूँ भावों की लहरों के उत्थान से।
ना ही कोई ज्ञान मुझे कवि या कविता का,
ना ही कोई अरमान.. कवयित्री बनने का।

मैं तो बस एक साधारण सी बाला
जो सब की, पर कोई नहीं उसका आला।
अपने एकाकीपन को सहलाती
कभी खिलती ,कभी कुम्हलाती
ख्वाबों को निहारती,कुछ रच जाती।
नहीं, मुझे नहीं बनना कवयित्री।

हाँ ....हास्य,रुदन,गायन
हर भावों में कर विचरण,
करती सर्व जीवन यापन
सृष्टि की सृजन कर्ता,
स्वयं में ही सर्वग्या।
सिर्फ और सिर्फ एक 'नारी'हूँ मैं,
नहीं.....नहीं कोई कवयित्री मैं ।।
पूनम😊

बुधवार, 28 मार्च 2018

शाम के ढलते हीं.......बढ़ जाती हैं तन्हाईयाँ!!



ऐ रब, छीन ले मुझसे
मेरा हाफीजा,
इससे पहले की
फट जाए कलेजा।
ढल गए वस्ल के दिन
आ गई हिज्र के रात।
पल पल याद आती
तुम्हारी हर वो प्यारी बात।।

शाम के ढलते ही
बढ़ जाती है तन्हाईयाँ।
बड़े याद आते
तुम तन्हाइयों मे...
बड़े याद आते
तुम उदासियों में....
पर याद आते
बेहद...... खुशियों में,
खुशी का हर लम्हा
तो आती है सिर्फ ,
तुम्हारे आने से।

इंतजार बन गई है जिंदगी,
तुम ही तो हो मेरी बंदगी।
मिलन की चाह बढ़ जाती
हर बार रुख़सत के बाद।

तुमसे सिर्फ चाहत की
उम्मीद ही तो रखी है,
भुला बैठी  खुद को,
समाहित हो गई तुममें,
आ जाओ न साथी,
बढ़ा दो न हाथ प्रिय।

अपना एक सतरंगी सपना
इन्द्रधनुष जैसा घर अपना,
बादलों के झुरमुठ से भी
ना हारेंगे हिम्मत हम।
खिलखिलाएंगे
जिंदगी के सारे रंग
जब मिल बैठेंगे संग।

अलकों से लगा कर रखना,
सीने में छुपा कर रखना,
कल जब रहूंगी ना मैं शेष,
बच जाएंगे सिर्फ अवशेष
देख कर उन भस्मों को
कुछ तो होगा भान
करते थे कितना मान।
बस दे देना इतना सम्मान।।



हाफीजा-याददाश्त,स्मरण शक्ति
वस्ल-मिलन
हिज्र-विरह,जुदाई
रुख़सत-विदाई

सोमवार, 5 मार्च 2018

महिला दिवस की बधाई।।



अलसायी फिजा में साँय-साँय करती बयार ,जैसे मन की, परिक्रमा कर रही हो। धरा ने सूरज 'महाराज' की एक और परिक्रमा पूरी कर ली है, चक्र काट रही जो अपनी ही धुरी पे, भले हीं कितना ताप झेल रही हो, कितने ही भार उठा रही हो। किसे पड़ी है इनकी, छोड़ो इन बकवास बातों को, खुश हो जाओ, हमने भी एक परिक्रमा पूरी कर ली है। फिर से 'women's day'आने वाला है। एक बार फिर से हम नारियों का अभिनंदन करेंगे,उन्हें , अगली परिक्रमा को तैयार करेंगे याद दिलाएंगे की तुम 'नारी' हो, साल का एक दिन तुम्हारा है। हमने कितना खयाल रखा है, भले ही 364 दिन , ना रहे खयाल तुम्हारा। लेकिन आज हम गुणगान करेंगे.... तुम्हारे कर्मों का नहीं, अधिकारों का नहीं, सिर्फ और सिर्फ, अपने महत्व का! जो हमने वर्ष भर की परिक्रमा के बाद एक दिन तुम्हें दिया। और नारी खुश,भाव विह्वल! भूल जाएंगी अपने हर निशानों को, उनके शरीर पे यहां, वहां,..... तो दिल पे इतने गहरे जो सहलाने भर से और दर्द दे जाते हैं। हो जाती हैं मुस्कुराने को मजबूर, दबा अपने नैनों के भावों को , अधरों से खुश होती हैं,भरपूर। एक दिन जो हुआ है उनके नाम।। भले इस दिन के एवज में करती रह जाएंगी परिक्रमा , अपनी ही धुरी पे सदैव, बन कोल्हू के बैल । Happy women's day😍 पूनम।

मंगलवार, 16 जनवरी 2018

यूँ बवाल न होता!!

काश! तुम आते,
चुपके से गले लग जाते,
तो यूँ सवाल न होता।
मेरी हर खता पे ,
यूँ बवाल न होता।।

दिल के टूटने पे ,
होती नहीं आवाज
प्यार करने का मुझसे,
काश ! कर जाते आगाज़।।
आंसुओ की धार से
नयनों में ये सैलाब ना होता।
समुंदर के हर उफान पे
फिर ,ये बवाल न होता।।

गम भरपूर है,
हँसी के दरबार में,
सोचो तो सागर का भी दरकार न होता।
डूब जाओ तो है जिंदगी,
प्यार ही होती अगर बंदगी,
तो,ढाई आखर के इजहार पे,...
यूँ बवाल ना होता,कभी बवाल न होता।।
पूनम💕

गुरुवार, 23 नवंबर 2017

बेटियों का क्या है कसूर!!

लड़की कमाने वाली चाहिए,
खुद का खर्च उठाने वाली चाहिए
शादी का खर्च तो आप उठाओगे ही
दरवाजे की शोभा तो बढ़ाओगे ही,
लड़की कमाऊं चाहिए,
और हमें कुछ नहीं चाहिए।

हर्षित,मुदित पिता ,
मन ही मन गदगद,इतराता।
लड़की पढ़ाई ,तो आज
दहेज की भार ना आई।

प्रफुल्लित मन, नाते-रिश्तेदारों संग,
गाजे-बाजे,ढोल-नगाड़ों के धुन पे
नाचते गाते ,बिटिया ससुराल चली
मां-बाबुल का दिल तोड़ चली।
बनी रहे जोड़ी,सबने ली बलैयां,
खुश रहो, संग शिव समान सैयां

नव युगल जोड़ी,प्यार से ओत-प्रोत,
समय उड़ चला, लगे पाखी के पर ,
धीरे धीरे समझने लगे हकीकत जिंदगी की,
सिर्फ प्यार से ना भरता पेट ,
करना होगा आखेट।

आ गई है पत्नी,हो गई है शादी
मिल गई अब सब कर्मों से आजादी।
पत्नी कमाऊं है सम्हाल लेगी,
घर बाहर की जिमेदारी ।
करेगी हमारे माँ-बाप,
भाई-बहनों की तीमारदारी।

हर छोटे बड़े जरूरतों को पूरा करते
छीन गई लड़की की आजादी,
कभी पति को खुश करे,
कभी घरवालों को,
जो होता अक्सर नाकाफी।
सब कहते लड़की कमाऊं है तो क्या?
करनी होगी पूरी अपनी सारी जिम्मेदारी।

शुरू होती यहीं से नई कहानी
शादी कर के लाना न था सिर्फ अर्धांगिनी,
चाहिए था पूरा का पूरा बैंक बैलेंस,
घर चलाये सूद में और देते रहे कैश।

पढ़ी लिखी लड़की भी है लड़के के बराबर,
       पर सुबह- शाम सुनना पड़े उसे
            तुम हो गंवार -अनपढ़।
    रोते बिसूरते कुछ करतीं अपने
          किस्मत से समझौता,
      तो कुछ हिम्मत वाली होतीं
         विद्रोह करने को मजबूर।
        इनमें भी कमजोर ,अपने को
           कर लेतीं दुनिया से दूर।
 
     बेटी तो बेटी है,उसका क्या कसूर
        कल, आज या कल हो,   
        यही है समाज का दस्तूर।।
पर हक के लिए एक जुनून चाहिये,
आसमां को भी लाएंगे जमीं पर
सिर्फ बेटियों पे हमें गुरुर चाहिए।।
पूनम🌼

तट

तोड़ते रहे तुम बंदिशें , और समेटती रही मैं,  बारंबार ! की कोशिश जोड़ने की, कई बार ! पर गई मैं हार , हर बार ! समझ गई मैं, क्यु हूँ  बेकरार ! ...