बुधवार, 4 अप्रैल 2018

नहीं मैं कोई कवयित्री!!



कवयित्रि!......नहीं ,
मै  कहाँ कवयित्री कोई।
नहीं रचती मैं कोई कविता
मैं,सिर्फ एक 'नारी' हूँ ,
जो,सिर्फ अपने भावों से भारी हूँ ।
दिल के पन्ने से उतार ,
कर देती कलम बद्ध ,
सदाशयता से हिय के बोल।।

कौन अपना ,कौन पराया
ये जग तो है सिर्फ मोह माया।
सुख-दुख में प्लवन करती,
जीवन नैया की खेवैया हूँ मैं
सपनों की गठरी हूँ मैं,
सिर्फ एक 'नारी' हूँ मैं

चित्तवृत्ति को समझना तो दूर,
ये तुमने मुझे क्या बनाया।
दिल ने दिल के अरमानों को ना समझ
कवयित्री का ये चोला क्यों पहनाया।।

नहीं!.......मैं शब्दों से खेलती भी नहीं,
ना बुनती हूँ शब्दों का कोई जाल,
मैं तो अपने अरमानों को पहनाती हूँ
बस कुछ शाब्दिक जामा,
सजाती हूँ उन्हें कल्पना के उड़ान से,
संवारती हूँ भावों की लहरों के उत्थान से।
ना ही कोई ज्ञान मुझे कवि या कविता का,
ना ही कोई अरमान.. कवयित्री बनने का।

मैं तो बस एक साधारण सी बाला
जो सब की, पर कोई नहीं उसका आला।
अपने एकाकीपन को सहलाती
कभी खिलती ,कभी कुम्हलाती
ख्वाबों को निहारती,कुछ रच जाती।
नहीं, मुझे नहीं बनना कवयित्री।

हाँ ....हास्य,रुदन,गायन
हर भावों में कर विचरण,
करती सर्व जीवन यापन
सृष्टि की सृजन कर्ता,
स्वयं में ही सर्वग्या।
सिर्फ और सिर्फ एक 'नारी'हूँ मैं,
नहीं.....नहीं कोई कवयित्री मैं ।।
पूनम😊

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